Yug Purush

Add To collaction

Boy's Hostel (भाग -1)

A Boy's Hostel

कभी-कभी एक बुरा ख्वाब एक बुरी हकीकत बन कर सामने आता है, वह इतना बुरा और भयावह होता है कि हमारी जिंदगी की  समझ और परख करने की सभी इन्द्रियों, क्षमताओं को तोड़कर चकनाचूर कर देता है. सबके साथ कभी  ना कभी ऐसा होता है... जब उसे समझ नहीं आता कि ये क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है... उन दिनों  मेरे साथ भी हुआ, बुरे तरीके से हुआ .......

उस रात सोने से पहले मैंने सोचा तक नहीं था कि आज मुझे इतना बुरा सपना आएगा, मै तो हर हमेशा की तरह उस रात भी  १२  बजे तक पढाई करके बढ़िया दो गिलास पानी पिया, हॉस्टल में आलरेडी सो चुके हुए लडको के दरवाजो को रात के १२ बजे पीट -पीट कर उन्हें परेशान  किया और फिर वापस अपने रूम आकर मस्त चादर तान कर सो गया .... पर वो ख्वाब जो रात को मैं देखने वाला था या जो भी सपना मैंने उस रात देखा... वह मेरे लिए बहुत खास होने के साथ-साथ बहुत डरावना भी था, या होने वाला था. वह बुरा ख्वाब खास इसलिए था क्योंकि सुबह होते ही मेरा दिमाग घुमा कर रख दिया और डरावना इसलिए क्योंकि उसमें मै भी  शामिल था....
.

उस समय मैं 12th क्लास में था और घर से दूर भोपाल में एक बॉयज स्कूल में अपनी पढ़ाई कर रहा था. स्कूल, हॉस्टल की सुविधा भी देती थी.. इसलिए वहां पढ़ने वाले अधिकतर छात्र हॉस्टल में ही रहते थे. हमारी दिनचर्या काफी थका देने वाली होती थी... सुबह 5:00 बजे से उठने के बाद, सीधे रात के 9:10 बजे ही फ्री होते थे और थकान भरे दिनचर्या के कारण जब रात में सोने जाते... तो सोते वक्त यह सोचते कि.. यार सपने में कैटरीना कैफ आ जाए या फिर प्रियंका चोपड़ा.. या फिर एंजलीना जोली..  या फिर गेम ऑफ़ थ्रोनस की इमिलिया क्लार्क... बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड हमें सब चलती थी .उस समय यही एक्ट्रेस  ज्यादा फेमस थी हमारे स्कूल के वातावरण मे.. इसलिए अकसर बाते भी इनकी ही होती थी या फिर कोई दूसरी मालदार हसीना ख्वाब मे आए और इस कदर आए कि एक याद बनकर रह जाए..... मतलब इनके साथ मैं रात भर सपने में मस्ती करूं.. ऐसी मेरी दिली इच्छा हर रात सोते समय दिल मे रहती.


उस रात भी मैं यही सोच कर सो रहा था कि आज कोई हसीना सपने में आएगी लेकिन वैसा कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि वैसा कुछ होना ही नहीं था... उसके बजाय मैंने सपने में एक मौत देखी.  मैं जिस हॉस्टल में रहता था वो मौत उसी में हुई थी.. मरने वाला और कोई नहीं बल्कि मेरा एक दोस्त विनोद था. जो 12th Biology का छात्र था. जिसका रूम नीचे वाले फ्लोर पर था.. वह हॉस्टल के बाथरूम में छत से लगे हुए एक हुक से लटका हुआ था. सपने में मैं वहां सुबह उठकर हाथ मुंह धोने गया था. लेकिन जैसे ही बाथरूम का दरवाजा खोला तो मेरा वह दोस्त मुझे छत की हुक से लटका हुआ मिला......

मैं सपने मे तुरंत बुरी तरह चीखा और मेरी आंख खुल गई... मैंने खुद को पसीने से पूरा भीगा हुआ बिस्तर पर पाया. जल्दी से उठा और समय देखा.. शाम के 6:00 बज रहे थे...


" यह कैसे मुमकिन है...? मैं कल रात से आज शाम तक सोता रहा...? इतनी देर तक...?  "जब मैंने समय देखा तो मेरी पहली प्रतिक्रिया यही थी....

अब जब सो कर उठा ही था तो बाथरूम तो जाना ही था, मैं तुरंत बाथरूम की तरफ डरते हुए चल पड़ा, क्योंकि मुझे अपना सपना अभी भी याद था.. इसलिए मैंने पहले धीरे से बाथरूम का दरवाजा खोला और उस तरफ देखा जहां सपने में मेरा दोस्त लटका हुआ था. जान में जान आई, ये देख कर कि वहां सपने जैसा कुछ भी नहीं था... सब कुछ बिल्कुल ठीक था.. सब कुछ नार्मल था. मैंने एक लंबी और भारी सांस ली और वहां से अपना चेहरा धोकर रूम की तरफ वापस चला...
.

इतनी देर में जो एक बात मेरे दिमाग में खटकी थी वह यह कि इस वक्त उस पूरे हॉस्टल में एक भी हलचल नहीं थी.. जब मैं रूम से बाथरूम की तरफ आया... तब भी कोई नहीं दिखा था और अब जब बाथरूम से रूम की तरफ जा रहा था.. तब भी पूरा माहौल शांत था. मानो उस पुरे हॉस्टल मे मै अकेले रहता हूँ...??? जबकि, एक हॉस्टल में इतनी शांति कभी नहीं होती.. बॉयज हॉस्टल में तो बिल्कुल भी नहीं. दिन भर किसी की लड़ाई झगड़े की, गाली गलौज की आवाज ना सुनाई दे तो.. हॉस्टल..   हॉस्टल जैसा लगता ही नहीं.

मैं हॉस्टल के अंदर खुले हुए सभी कमरों के अंदर झाकते  हुए आगे अपने रूम कि तरफ बढ़ रहा था...  माना कि हॉस्टल में लड़के साफ-सफाई बिल्कुल नहीं रखते.. सारी चीजें इधर-उधर अस्त व्यस्त रहती हैं... लेकिन फिर भी, हॉस्टल का हर एक रूम बिल्कुल ऐसा लग रहा था जैसे कई सालों से यहां कोई नहीं आया हो...मानो इतने सालो से वो रूम बंद रहा हो और आज जब मै इस तरफ से गुजर रहा हूँ तो एका एक सभी कमरों के दरवाजे किसी अनजानी शक्ति के परिवेश मे अचानक खुल गये हो...???


"सब खाना खाने, भोजनालय गए होंगे... "अपने रूम की तरफ बढ़ते हुए मैंने खुद से कहा और खुद भी तैयार होकर मेस की तरफ पैदल ही निकल पड़ा..

लेकिन एक बात अब भी मेरे अंदर खटक रही थी, वह यह की मैं लगातार 20 घंटे कैसे सो गया...?? और वो सपना.. साला.... बहुत ही बुरा सपना था और यह सारे लौंडे आज एक ही वक्त पर कहां गायब हो गए...? यहाँ रास्ते पर भी कोई नहीं दिख रहा..?? सबने एक साथ सपने कि तरह फंसी लगा ली क्या...???
.

ऐसे कई खयालात बुनते और बनाते हुए मै भोजनालय  में घुसा, वहां किसी जानवर के झुंड की तरह आवाज आ रही थी... ऐसा लग रहा था जैसे इंसान नहीं बल्कि कोई जानवर का झुंड खाना खा रहा हूं, मतलब इतनी लड़ाई और शोर-शराबा वहां हो रहा था... पुरे स्कूल के लड़के वहा मौजूद थे. और तब मुझे कुछ नार्मल सा फील हुआ. क्यूंकि कुत्तो कि तरह बिना मतलब के लड़ना ही हमारे हॉस्टल कि पहचान थी.


इस दौरान, मैंने भी एक प्लेट उठाया और खाने से लबालब प्लेट भरकर उन जानवरों में शामिल हो गया... जब मैं वहां एक टेबल पर बैठकर खाना शुरू किया था, तब वहां बहुत सारे लोग थे, कुछ देर तक क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं चला..


ना मैंने किसी से बात की और ना ही किसी और ने मुझसे बात की.. मैं सिर्फ अपनी थाली का खाना खत्म करने में जी-जान से तुला हुआ था. उसी बीच मैंने जब एक नजर उठाकर सामने देखा तो दंग रह गया.. सब वहां से एकाएक गायब हो गए थे.. मुझे ना तो कोई टेबल पर बैठ कर अपना पेट भरता दिख रहा था और ना ही वहां भोजनालय में कोई काम करने वाला था कर्मचारी .. सब अचानक से पता नहीं कहां छूमंतर हो गए थे...

"BC, यह क्या हो रहा है...ये किसकी हरकत है..?"थाली पर नजर डालते हुए मैंने खुद से कहा...  मेरी प्लेट में इस वक्त ना जाने पानी कहां से भर गया था, चावल दाल के दाने मेरे थाली में भरे पानी में ऊपर तैर रहे थे.. मैंने एक दो बार वहां काम करने वालों को आवाज दी. लेकिन जब कोई नहीं आया तो मैंने प्लेट गुस्से से जमीन में पटका और वहां से बाहर आने के लिए अपनी जगह से  उठा


मैं गुस्से में, बाहर की तरफ बढ़ ही रहा था कि मेरी नजर जमीन में बैठे एक लड़के पर पड़ी.. उस लड़के की उम्र मेरी जितनी ही रही होगी, मैंने ऐसा अंदाजा लगाया.. उसका चेहरा शुरू में साफ नहीं दिखाई दिया लेकिन जब मैं वहां वही खड़ा होकर उसे देखता रहा.. कि वह कौन है, तब धीरे-धीरे उसका चेहरा साफ होता गया.. उस वक्त वहां नीचे बैठा हुआ लड़का और कोई नहीं बल्कि मेरा वही दोस्त विनोद था, जिसने सपने में खुद की जान दी थी. वह इस वक्त जमीन में इधर-उधर बिखरे हुए दानों को इकट्ठा कर रहा था.

" क्यों बे, मिर्गी मार गई है क्या जो ऐसी हरकतें कर रहा है" मैने उससे कहा... क्यों कहा..? मै आज तक सस्पेंस मे हूँ


उसने मेरी बातों का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि वह और भी तेजी से वहां गिरे हुए दानों को हाथ से बटोरने लगा.. जैसे वह कोई हीरे के दाने हो.जब उसने मुझसे बात नहीं की तो मैंने उसे गालियां बकी और वहां से आगे बढ़ा... अभी मैं दो चार कदम ही चल पाया था कि मेरे पैर जमीन से चिपकने लगे .. मेरे लाख कोशिशों के बावजूद और अपनी पूरी ताकत लगाने के बाद भी मैं एक कदम आगे नहीं बढ़ पा रहा था.. और इसी वक्त मेरे सर में एक तेज दर्द शुरू हो गया.. वो दर्द ऐसा था कि जैसे किसी ने लोहे की रॉड लेकर अपनी पूरी ताकत से मेरे सर पर दे मारा हो.. मैं आंखें बंद करके अपने दोनों हाथों से खुद के सर को पकड़ा और दर्द के मारे चीख पड़ा. लेकिन मेरी उस चीख को सुनने वाला वहां कोई नहीं था सिवाय मेरे उस दोस्त के.. मैने चिल्लाते हुए उसका नाम लिया...


" चिल्लाता क्यों है बे... आ बैठ इधर..." विनोद बोला


मेरी नजर उस पर जैसे ही पड़ी तो मेरी दोनों आंखें मानो बाहर निकल आई हो.. पूरा गला सूख गया. क्योंकि इस वक्त मेरे उस दोस्त के सर के बाल  लड़कियों की तरह एकदम अचानक से लंबे हो गए थे और गीले होकर फर्श पर लोट रहे थे...  उसकी  दोनों आंखें सुर्ख लाल थी.

" विनोद ..? "उसको देख कर हकलाते हुए मैंने उसका नाम लिया


To Be Continued.....(आखिरी भाग कल )

   7
0 Comments